Print this page
Saturday, 12 January 2019 13:48

राजनीति के शिकार, बेचारी गाय और किसान

Written by
Rate this item
(0 votes)

indian cow

सियासत के दो पाटों के बीच गाय पिस रही है। गोरक्षा, गोकशी और भीड़ हिंसा के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तलवारें खिंची रहीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के सख्त तेवर देख सरकारी अमला गोवंशीय पशुओं के पीछे दौड़ रहा है।

फसलों को नुकसान पहुंचाने से आहत ग्रामीणों के आवारा पशुओं को पकड़कर सरकारी भवनों में बंद करने की एक नई मुहिम शुरू हो गई। सियासी नफा नुकसान का गणित भांपने में माहिर राजनीतिक दल भी इस मुहिम को हवा दे रहे हैं। तेज होती सियासत के बीच गाय की दुर्दशा हो रही है। गाय की कीमतों में भारी गिरावट आई है। गोवंशीय पशुओं को पकड़ा तो जा रहा हैं, लेकिन आखिर इन्हें लेकर कहां जाए, चारागाह बचे नहीं है, चंदे से चल रही गोशालाओं के पास इतने संसाधन नहीं है कि वह इन्हें चारा खिला सके। कांजी हाउस पहले ही बंद हो गए, प्रदेश सरकार की गोशालाओं के निर्माण की योजना परवान नहीं चढ़ पाई। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि कहां जाए बेचारी गाय...

बिजनौर में किसानों के लिए देशी नहीं बल्कि विदेशी प्रजाति का गोवंश मुसीबत बना है। विदेशी नस्ल की गाय बांझपन की शिकार हो रही हैं। इसके अलावा इनके बछड़े खेती के प्रयोग में भी नहीं आते हैं। किसान पहले इन गोवंश को बिचौलियों आदि को बेच देते थे। वहां से ये गोवंश किसी न किसी माध्यम से कसाई के पास पहुंच जाता था और गोवंश का कटान हो जाता था, लेकिन पुलिस की सख्ती के चलते गोवंश कटान पर पूरी तरह रोक लग गई है। ऐसे में किसान अपने गोवंश को खुला छोड़ने को मजबूर हैं। ये गोवंश खेतों में जाकर नुकसान करते हैं।
देशी गाय पालने का चलन खत्म होता जा रहा है। देशी गाय गुणों की खान होती हैं, लेकिन उसका दूध कम होता है। किसान दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए विदेशी नस्ल की एचएफ व जर्सी गाय पालना शुरू कर दिया। ठंडे पर्यावरण वाले देशों की ये गाय खुद को क्षेत्र की गर्मी व मौसम के अनुसार ढाल नहीं पाईं। इन गाय के बछड़े खेती के लिए बेकार हैं। साथ ही ये गाय चार से पांच साल में ही बांझपन का शिकार हो जाती हैं। बांझपन का शिकार गायों व बछड़ों को किसान बिचौलियों या सीधे कसाई को बेच देते थे। बिचौलियों को बेची जाने वाला गोवंश भी कसाइयों के पास ही पहुंच जाता था। प्रदेश में भाजपा की सरकार व योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोवंश कटान करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है। पुलिस गोवंश कटान करने वालों के खिलाफ रासुका तक लगा रही है। ऐसे में गोवंश का कटान बंद हो गया है। कटान बंद होने से किसानों के लिए अनुपयोगी गोवंश को घर पर रखकर चारा खिलाना मुश्किल होता जा रहा था। ऐसे में किसानों ने अपने पशुओं को दूसरे क्षेत्र के जंगल में ले जाकर खुला छोड़ना शुरू कर दिया। यह निराश्रित गोवंश अब किसानों के लिए मुसीबत बने हैं। सरकार ऐसे किसानों को पकड़ने में पूरी मुस्तैदी दिखा रही है। पूरे जिले में अभियान चलाकर गोवंश पकड़े जा रहे हैं। इन गोवंश को किसी न किसी आश्रय स्थल पर भेजा जा रहा है।
कीमत हुई आधी
एचएफ गाय का दूध बहुत पतला होता है। इनका दूध सरकार द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है। पराग कंपनी ने एचएफ गाय का दूध खरीदना बंद कर दिया है। गोवंश को बेचना बहुत मुश्किल हो गया है। पहले एचएफ नस्ल की गाय तीन हजार रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मिलती थी। अब यह डेढ़ हजार रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मिल रही है। इस गाय की कीमत आधी रह गई है।

यहां बनीं गोशालाएं
जिला पंचायत ने जिले के गांव भागूवाला, लालवाला, गोपालपुर, कोटकादर, रेहड़, बास्टा, नूरपुर छिपरी, जलालपुर काजी, पैजनियां सहित दस जगह कांजी हाउस को गोशाला बनाया गया है। नगर पालिकाओं व पंचायतों में भी 36 करोड़ की लागत से गोशाला बनाई जा रही हैं। नूरपुर में गोशाला निर्माण लगभग पूरा हो गया है।
अब लगेगा जुर्माना
गायों को निराश्रित छोड़ने वालों पर भी अब सख्त कार्रवाई की जाएगी। ऐसे किसानों पर एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। साथ ही निराश्रित पशुओं के चारे के लिए भी सरकार ने 100 रुपये प्रतिदिन की व्यवस्था की है।
अभी पूरी नहीं व्यवस्थाएं
निराश्रित पशुओं को रखने के लिए गांवों में बनाई गोशालाओं में अभी व्यवस्था पूरी नहीं हो पाई हैं। गोवंश को अभी छप्पर आदि में ही रखा जा रहा है, लेकिन टीन शेड डालने की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जा रही है।
चंदे से चल रहीं छह गोशालाएं
जिले में छह गोशालाएं चंदे से चल रही हैं। समय-समय पर उन्हें सरकारी मदद भी दी जाती है। चंदे से चलने वाली गोशालाओं में पुलिस द्वारा पकड़े जाने वाले गोवंश को रखा जाता है। प्रशासनिक अधिकारी समय-समय पर इनका निरीक्षण करते रहते हैं।
ज्यादातर गोवंश विदेशी नस्ल का
मुख्य पशुधन चिकित्साधिकारी डा.भूपेंद्र सिंह के अनुसार निराश्रित गोवंश के लिए सभी व्यवस्था पूरी की जा रही हैं। ज्यादातर गोवंश विदेशी नस्ल का है। विदेशी नस्ल की गायों के बांझपन के शिकार व सांड़ के खेती के प्रयोग लायक न होने के कारण किसान इन्हें छोड़ देते हैं। अब गोवंश छोड़ने वाले किसानों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी।

Additional Info

Read 1685 times Last modified on Saturday, 12 January 2019 14:00
Nagina.Net

Latest from Nagina.Net

Related items