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Thursday, 11 March 2021 12:14

अब्दुल के हाथ से बनी शीशी में आता है गंगाजल

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नगीना के मोहल्ला मनिहारी सराय में अब्दुल सलाम के घर पर लगी भट्टी जिस पर बनती थी कांच की शीशी। नगीना के मोहल्ला मनिहारी सराय में अब्दुल सलाम के घर पर लगी भट्टी जिस पर बनती थी कांच की शीशी। AmarUjala

ऩगीना। महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक के लिए हरिद्वार से कांवड़िये कांवड़ में जिस कांच की शीशी में गंगाजल लेकर आते हैं उसे आज भी नगीना का अब्दुल सलाम का परिवार बनाता है।

नगीना की विश्व प्रसिद्ध कांच की शीशियों को बनाने की हस्तकला को सरकारी प्रोत्साहन व रियायती मूल्य पर मिलने वाले कोयले के बंद हो जाने के कारण यह हस्तशिल्प कला विलुप्त हो गई है। इस काम में लगे परिवार दूसरे धंधों में लग गए हैं, लेकिन अब्दुल सलाम का परिवार ही कांच की शीशी बनाने का काम करता है।
नगीना के मनिहारी सराय मोहल्ले में रहने वाले मनिहार बिरादरी के अधिकांश परिवार पहले कोयले की भट्टियों पर कांच की शीशियां बनाने का काम करते थे। एक समय पर करीब 70 से अधिक भट्ठियां थीं। सरकार रियायती मूल्य पर कोयला मुहैया कराती थी। महाशिवरात्रि पर महीनों पहले से छोटे बड़े आकार की शीशियां बननी शुरू हो जाती थीं। ये हरिद्वार जाती थीं और शिवभक्त इन शीशियों में ही गंगाजल ले जाकर महादेव का जलाभिषेक करते थे। कांच की इन शीशियों का प्रयोग चिकित्सक भी दवाइयों को देने के लिए किया करते थे।

लेकिन, धीरे-धीरे कांच की शीशी का प्रयोग कम होता गया और प्लास्टिक की शीशी बाजार में आ गईं। सरकार ने कोयले पर रियायत देनी बंद कर दी तो बोतल बनाना महंगा हो गया। अब चिकित्सक भी प्लास्टिक की शीशी का ही प्रयोग करते हैं। कुछ लोगों ने प्लास्टिक की शीशियां बनाने की मशीनें भी लगाईं, लेकिन फैक्ट्रियों में बनी शीशियों की गुणवत्ता व कीमत के मामले में यह पिछड़ गईं। आधुनिकता की दौड़ में कांच की शीशियों का स्थान प्लास्टिक की शीशियों ने ले लिया। कांवड़िये अब प्लास्टिक की बोतल में ही गंगाजल ला रहे हैं। अब केवल अब्दुल सलाम ही कांच की शीशी बनाने के पुश्तैनी काम को कर रहे हैं।

तीन, चार दिन ही चलती है भट्ठियां

अब्दुल सलाम का कहना है की यह काम उनके परिवार में सदियों से हो रहा है। लेकिन उनकी भट्ठी भी सप्ताह में तीन या चार दिन ही चलती है। अधिकांश लोगों व उनके परिवारों ने दूसरे कारोबार करने शुरू कर दिए हैं। बताया कि एक बार भट्ठी चढ़ने पर करीब 700 से 800 शीशी बन जाती हैं। कांवड़ के जल के लिए प्रयोग में होने वाली कांच की छोटी शीशी करीबन डेढ़ रुपये कीमत की जाती है। शिवरात्रि पर काफी डिमांड रही, लेकिन जितनी तैयार हो पाईं, उनकी सप्लाई हरिद्वार कर दी गई।

सरकारी मदद मिले तो फिर चलेगा कारोबार

मनिहारी सराय के सभासद मोहम्मद तालिब का कहना है कि कांच की शीशी की वजह से उनके मोहल्ले व नगर की पहचान पूरे देश भर में होती थी। लेकिन सरकार द्वारा इस उद्योग को प्रोत्साहन न देने की वजह से यह उद्योग बंद हो गया। कांच की शीशी में हरिद्वार से आने वाला गंगाजल काफी लंबे समय तक शुद्ध रहता था। सरकार पहले कोयले का परमिट बनाती थी। इससे कोयला सस्ता पड़ता था। सरकार अभी भी इस कारोबार में लगे लोगों को कुछ मदद करें तो यह पुन: जीवित हो सकता है।

मुख्यमंत्री के सामने रखेंगे मामला : सांसद

नगीना सांसद गिरीश चंद का कहना है की नगीना के शीशी कारोबार को पुन: जीवित कराने के लिए वह मुख्यमंत्री से मिलकर कारोबार को बढ़ावा दिलाने के लिए सरकारी मदद की मांग करेंगे। इससे नगीना को दोबारा पहचान मिलेगी और लोगाें को रोजगार भी मिलेगा।

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