उत्तर प्रदेश की ज़मीन पर एक बार फिर शिक्षा के भविष्य को लेकर बवाल मचा है। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने सरकार पर करारा हमला करते हुए कहा है कि “सरकार समायोजन के नाम पर हज़ारों स्कूलों को चुपचाप बंद कर रही है।” इसको लेकर संघ ने बढ़ापुर से भाजपा विधायक सुशांत सिंह को एक भावुक ज्ञापन सौंपा, जिसमें नौनिहालों के भविष्य से हो रहे इस खिलवाड़ पर गंभीर चिंता जताई गई है।
इस ज्ञापन में बताया गया कि राज्य भर में वे प्राथमिक विद्यालय जिनमें 150 से कम छात्र हैं और उच्च प्राथमिक विद्यालय जिनमें 100 से कम छात्र हैं, उन्हें ‘प्रधानाध्यापक विहीन’ घोषित कर दिया गया है। नतीजा यह हुआ है कि हज़ारों अनुभवी प्रधानाध्यापक अब 'सरप्लस' की श्रेणी में डाल दिए गए हैं।
यह कोई पहली बार नहीं हो रहा — इससे पहले, एक ही परिसर में चल रहे करीब 20,000 विद्यालयों का एकतरफा विलय कर, वहां के प्रधानाध्यापकों के पद भी खत्म कर दिए गए थे। ये सभी निर्णय कागज़ों में सुधार के नाम पर लिए जा रहे हैं, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।
रसोइयों पर संकट
इस विलय की प्रक्रिया का सबसे दर्दनाक पहलू ये है कि हज़ारों मिड-डे मील रसोइयों की रोज़ी-रोटी छिनने जा रही है। जिन महिलाओं ने वर्षों तक बच्चों को दो वक्त का भोजन देने का जिम्मा उठाया, अब उन्हें बेरोजगारी की कगार पर खड़ा कर दिया गया है।
बच्चों के लिए स्कूल दूर, सपना और भी दूर
स्कूलों के विलय का सीधा असर छात्रों पर पड़ा है। अब उन्हें अपने गांव के स्कूल के बजाय दूर स्थित स्कूल में जाना पड़ेगा। यह दूरी सिर्फ किलोमीटर में नहीं, बल्कि शिक्षा से उनके रिश्ते की दूरी बनती जा रही है।
दबाव और डर का माहौल
शिक्षक संघ का आरोप है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी, प्रधानाध्यापकों और ग्राम प्रधानों पर दबाव बनाकर अभिभावकों से स्कूल बंद करने के प्रस्ताव मांग रहे हैं। यह जन-भावना के खिलाफ एक नीतिगत तानाशाही बनती जा रही है।
शुरू हो रहा है विरोध का बिगुल
अब यह चुप्पी टूट रही है।
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6 जुलाई को सोशल मीडिया (एक्स) पर एक ज़बरदस्त हैशटैग अभियान चलेगा।
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8 जुलाई को बीएसए कार्यालय पर जोरदार धरना होगा।
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इस दौरान मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भेजा जाएगा ताकि सरकार इस आत्मघाती कदम को रोके।
कौन थे मौजूद
इस ज्ञापन में संघ के अध्यक्ष मुनीश कुमार, अर्जुन सिंह, राकेश कुमार, सिकंदर पाल सिंह, उदय सिंह बिष्ट, अमन सिंह राणा समेत कई अन्य शिक्षक नेता मौजूद रहे। सभी की आंखों में एक ही सवाल था — "क्या हमारे गांव के बच्चों को शिक्षा का अधिकार छीन लिया जाएगा?"
सरकार को यह समझना होगा कि स्कूल सिर्फ इमारत नहीं होते — वे गांव की रगों में बहती उम्मीद होते हैं। अगर इन्हें बंद कर दिया गया, तो पीढ़ियों का अंधेरा तय है।
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